बॉलीवुड फिल्मों से कैसे पैसे कमाती है? बॉलीवुड का बिजनेस मॉडल।

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हेलो दोस्तो आज से करीब 4 साल पहले बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की एक फिल्म रिलीज हुई थी RACE 3 इस फिल्म को बहुत ही बेकार रिव्यूस मिले थे ऑडियंस से भी और क्रिटिक्स से भी। आज भी लोग इसे बहुत बड़ी फ्लॉप फिल्म कंसीडर करते हैं। क्या आपको पता है कि इसके बावजूद भी यह फिल्म एक बहुत बड़ी फाइनेंसियल हिट रही थी। 180 करोड़ की बजट से बनी इस फिल्म ने 300 करोड़ से भी अधिक की कमाई की थी वहीं दूसरी तरफ इसका एक उल्टा उदाहरण है 1970 में बनी एक बॉलीवुड फिल्म मेरा नाम जोकर के डायरेक्टर, प्रड्यूसर और ऐक्टर बॉलीवुड के फेमस अभिनेता राज कपूर थे। जो अपनी टाइम के बहुत फेमस अभिनेता हुआ करते थे। इस फिल्म को cultclassic कंसीडर किया जाता है ये फिल्म वन आफ थी बेस्ट फिल्म बनी थी अपने जमाने की लेकिन इसके बावजूद भी राज कपूर ने अपनी इतने पैसे गंवा दिए कि वह वित्तीय संकट में चले गए थे। इस फिल्म से सबसे ज्यादा पैसे कमाई करने वाली सोवियत यूनियन की एक कंपनी थी। यही कारण है कि हिट फिल्में किसी के लिए फ्लॉप साबित होती है और फ्लॉप फिल्में भी किसी के लिए फाइनेंसली हिट हो जाती है। 

Business Model Of Bollywood Films

इंडिया की फिल्म इंडस्ट्री दुनिया की सबसे ज्यादा फिल्मों को बनाने वाली फिल्म इंडस्ट्री है जितनी फिल्में इंडिया में बनाई जाती है उतनी फिल्में दुनिया में और कहीं भी नहीं बनाई जाती है हर साल 1500 से 2000 फिल्में इंडिया में बनाई जाती है 20 अलग-अलग भाषाओं में। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री जिसे हम बॉलीवुड के नाम से जानते हैं ये इंडिया में कॉफी पॉपुलर फिल्म इंडस्ट्री रही थी हालाकि जितनी फिल्में इंडिया में बनती थी उसकी 16% ही बॉलीवुड में बनती थी लेकिन बॉलीवुड का बॉक्स ऑफिस शेयर बहुत ज्यादा था लगभग 45% के आसपास था। लेकिन आज के समय में बॉलीवुड को पीछे छोड़कर तेलुगू इंडस्ट्री इंडिया में नंबर 1 स्थान पर आ गई है डोमेस्टिक बॉक्स ऑफिस शेयर में उनका शेयर 28% है और बॉलीवुड का नीचे गिर कर 27% पर आ गया है। बॉलीवुड का डोमिनेशन धीरे-धीरे गिर रहा है लेकिन इसके बावजूद सभी फिल्मों का कमाई करने का तरीका लगभग सेम है 

तो आइए जानते हैं कि यह फिल्में कैसे कमाती हैं इतने पैसे? यह समझने से पहले की फिल्म पैसे कैसे कमाती हैं हमें यह जानना होगा कि एक फिल्म बनाई कैसे जाती है।
फिल्म बनाने की क्रिया को चार स्टेज में डिवाइड किया जा सकता है।
1;Development 
2;Pre-Production
3;Production
4;Post-Production 

Development -

डेवलपमेंट वह स्टेज है जहां फिल्म की स्टोरी बनाई जाती है, डायलॉग्स लिखे जाते हैं और फिल्म की स्क्रिप्ट बनाई जाती है।

Pre-Production

प्री-प्रोडक्शन में मेन कास्ट और सपोर्टिंग कास्ट को हायर किया जाता है। इसी स्टेज में एक क्रयू को हायर किया जाता है शूटिंग इक्विपमेंट की अरेंजमेंट की जाती है शूटिंग की जगह भी सेलेक्ट की जाती है तथा जहां शूटिंग करनी होती है उस जगह की परमिट ली जाती है और इंश्योरेंस भी होता है।

Production

प्रोडक्शन स्टेज में फिल्म की रियल में शूटिंग होती है।

Post-Production

इस स्टेज में फिल्म की एडिटिंग होती है और फिल्म को पूरी तरीके से तैयार किया जाता है। 

अब इस प्रोसेस में बहुत सारे पैसे खर्च करने पड़ते हैं एक्टर और एक्ट्रेस की सैलरी देने के साथ-साथ राइटर्स को भी पैसे देने होते है फिल्म के इक्विपमेंट्स को खरीदने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। एक एवरेज बॉलीवुड फिल्म का बजट लगभग ₹50करोड़ होता है और जो बड़ी-बड़ी फिल्में हैं उनका बजट तो ढाई सौ से तीन सौ करोड़ से भी ज्यादा होता है तो इतना पैसा एक फिल्म में खर्च करने के लिए कोई एक अकेले आदमी रिस्क नहीं लेता इसके लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां होती हैं जो इन फिल्मों में निवेश करती हैं जिन्हे प्रोडक्शन हाउस कहते हैं।

जो इंडिविजुअल लोग फिल्म के सारे खर्चे को पूरा करने के लिए अकेले अपना पैसा निवेश करते हैं उन्हें प्रड्यूसर कहते हैं।  

भेजा फ्राई 2007 में रिलीज हुई एक कॉमेडी फिल्में है बॉलीवुड की सबसे कम लागत में बनने वाली फिल्म थी इसको बनाने का पूरा खर्चा लगभग ₹70लाख आया था ₹70लाख  एक ऐसा बजट है जिसे एक अमीर आदमी आराम से निवेश कर सकता है यही कारण है कि इसके एकलौते इंडिविजुअल प्रड्यूसर थे सुनील दोसी और इस फिल्म ने अपनी बजट से कई गुना अधिक की कमाई की थी और बहुत ही हिट फिल्म रही थी।
फिल्म प्रड्यूसर का काम बहुत रिस्की होता है क्योंकि यह अपना सारा पैसा एक फिल्म में निवेश करते हैं अगर यह फिल्म हिट रही तो इन्हें अच्छा खासा रिटर्न मिल जाता है लेकिन अगर यह फिल्म फ्लॉप हो गई तो उनके सारे पैसे भी डूब जाते हैं। और ज्यादातर फिल्में फ्लॉप जाती है बहुत कम फिल्में हैं जो हिट होती हैं। 
बात करें डायरेक्टर कि तो डायरेक्टर का काम फिल्मों को बनाने का होता है कम बजट की फिल्मों में डायरेक्टर को भी सैलर दी जाती है और बड़ी फिल्मों में तो डायरेक्टर अपना हिस्सा ही लेते हैं 
फिल्म जब एक बार बन जाती है तब उसे एक छोटी हार्ड डिस्क में कन्वर्ट कर दिया जाता है और उसके बाद प्रोड्यूसर्स उसे लेकर एक डिस्ट्रीब्यूटर के पास जाते हैं डिस्ट्रीब्यूटर का काम होता है कि फिल्म की मार्केटिंग करें और उसे सिनेमा हाल तक पहुंचाएं और ओटीटी प्लेटफार्म तक भी पहुंचाए। डिसटीब्यूटर्स इन फिल्मों को टीवी चैनलों में भी बेचते हैं और ओटीटी प्लेट फॉर्म पर भी ले जाकर बेचते हैं अब आगे जब फिल्मों को सिनेमा पर दिखाया जाता है तो आप जिस टिकट काउंटर से टिकट खरीदते हैं उसे बॉक्स ऑफिस कहते हैं और उस टिकट काउंटर पर हुई कमाई को बॉक्स ऑफिस कलेक्शन कहते हैं इन पैसों को सिनेमा हॉल के मालिक के द्वारा इकट्ठा किया जाता है अब इस कमाई से जो पैसे मिलते हैं इनमें से सरकार को 18% जीएसटी पे करना होता है और इन सब पैसों को काटने के बाद जो पैसा बसता है उसे उस फिल्म का नेट कलेक्शन कहते हैं अगर फिल्म का नेट कलेक्शन फिल्म के बजट से ज्यादा है तो इसका मतलब फिल्म हिट साबित हुई है। 
तो कुछ इस प्रकार से होती हुई फिल्मों की कमाई।






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