आखिर चांद का पिछला हिस्सा इतना अलग क्यों दिखता है?
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दोस्तों ये है हमारा चांद जो की धरती का इकलौता उपग्रह हैं जिसे हम चंद्रमा भी कहते हैं। ये चंद्रमा का वो हिस्सा जिसे हम रोज रात को आसमान में देखते हैं इसे नियर साइड कहते है और दूसरा है फार साइड जिसे हम कभी भी नहीं देख पाते हैं।
पिछला हिस्सा चांद का (फार साइड ऑफ चांद) |
ये पिक्चर चंद्रमा के पिछले हिस्से की है जिसे हम कभी भी नहीं देख पाते है। और ये चंद्रमा के उस हिस्से से बिलकुल अलग दिख रहा है जिसे हम रोज रात में देखते है। इस पिक्चर को नासा (NASA) के एलआरओ स्पेस प्रोव ने साल 2011 में लिया था। और ये साइड चांद के रियर साइड से एकदम अलग दिख रहा है और ऐसा लगता ही नहीं की चांद पीछे से ऐसा दिखता होगा।
दोस्तों चांद और धरती एक दूसरे से ग्रेविटेशनली लॉक्ड हैं जिससे धरती पर रहने वाले हम लोगों को चांद का केवल एक ही हिस्सा दिखता है और हम कभी भी चांद के पीछे की साइट को देख ही नहीं पाते है।
अब साल 1959 को सोवियत यूनियन के लूना (lUNA 3) स्पेस प्रोव ने पहली बार चांद के बैक साइड की पिक्चर ली थी। इससे पहले हजारों सालों से हम चांद के एक ही साइड को देख पाते थे और वही हमारे लिए पूरा चांद हुआ करता था।
LUNA 3 स्पेस प्रोव द्वारा ली गई चांद के पिछले हिस्से की फोटो |
लूना ने चांद के पिछले हिस्से की फोटो ली लेकिन एक सवाल सबके मन में पैदा कर दिया कि चांद के नियर साइड और फार साइड में इतना अंतर क्यों हैं?
अगर आपको नहीं पता तो मैं बताऊंगा इस ब्लॉग में कि चांद के नियर साइड और फार साइड में इतना डिफरेंस क्यों हैं? और कई सालों पहले हुए उस घटना के बारे ने भी बताऊंगा जिससे चंद्रमा का फार साइड और नियर साइड में इतना अंतर है।
दोस्तों जब हम चांद के नियर साइड को देखते है तो चांद पर भी हमे काफी दाग दिखाई पड़ते हैं और उसी दाग को लुनार मेयर कहते हैं।
दरअसल प्राचीन समय में चांद पर मैग्मा की नदियां बहा करती थी जो की इस पर होने वाली वोल्केनिक्स एक्टिविट का नतीजा था। लेकिन अब चांद जब पहले की तरह जियोलोजकली एक्टिव नहीं रह गया है। तो इन जगहों पर डार्क बसल्टिक प्लेस बन गया है और जब हम चांद के फार साइड पर नजर डालते है तो हमे ये लूनार मेयर बहुत कम दिखते हैं। ऐसा लगता है कि एक साइड पर एस्ट्रॉयड बहुत ज्यादा हुआ है और वही दूसरी तरफ बहुत कम।
चांद की फार साइड जिसे हम डार्क साइड भी कहते हैं वो चांद के नियर साइड से काफी चमकदार दिखाई देती है।
हमारा चांद जो है वो दोनों तरफ से देखने में ही अलग अलग दिखता है, और अपोलो 11 मिशन से चांद से जो मून रॉक लाया गया था उससे पता चलता है की हमारे चांद की दोनों साइड के सर्फेस की कंपोजिशन भी अलग अलग है। अपोलो मिशन के दौरान ही मून पर ही एस्ट्रोनॉट्स को एक रॉक मिला था जिसे कहा गया ‘द जेनिसस रॉक’ (The Genesis Rock)। अब इस रॉक में एक राज छुपा था जिसने चांद के बारे में बहुत कुछ राज खोली थी।
ये है चांद की दोनों साइड का थोरियम कंसंट्रेशन मैप. |
इस साल 1998 में लॉन्च हुए नासा के लूनार प्रोस्पेक्टर स्पेसक्राफ्ट से ऑप्टेन किया गया था। इस मिशन के तहत चांद पर उपस्थित सभी प्रकार के तत्वों को मैपिंग की गई थी। तो वही ऊपर की फोटो में हमे नियर साइड पर एक बड़ा सा स्पॉट दिखाई दे रहा है जोकि फार साइड पर बहुत छोटा है। तो दोस्तो जो बड़ा सा स्पॉट दिखाई दे रहा है उसमे थोरियम को मात्रा बहुत ज्यादा है तथा और भी तत्व पाए जाते हैं एन जगहों को क्रीप (KREEP - K-Potassium, REE-Rare Earth Element, P-Phosphorus) के नाम से जाना जाता है।
अब अगर आपने सही से देखा होगा तो पाया होगा कि क्रीप की लोकेशन वही है जो लोकेशन लूनार मेयर की थी। वैज्ञानिकों का माने तो थोरियम के कारण ही लाखों साल पहले चांद पर स्ट्रीम वोल्कैनो ऐक्टिविटी हुए थी। इसका मतलब है की लूनार मेयर और क्रीप आपस में कनेक्टेड हैं।
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