और उस पर न के बराबर एडमिंस्ट्रेटिव फीस ले इन कंपनियों का ये भी दावा है कि उनका पब्लिक नेटवर्क से कोई लेना देना नहीं है ऐसे में देश की सुरक्षा को भी कोई खतरा नहीं है। यही नहीं सरकार को अच्छी खासी आय भी होगी। इसके बाद टेलीकॉम ऑपरेटर के संगठन COAI ने साफ बोल दिया है कि अगर इन प्राइवेट इंटरस्प्राइज को कैप्टिप नेटवर्क खड़े करने की इज़जत दी गई तो टेलीकॉम ऑपरेटरों के लिए धंधा करना बेईमानी होगा। COAI का कहना है कि इन टेलीकॉम कंपनियों को पीछे से टेलीकॉम के धंधे में घुसने की इज़जत बिलकुल भी नहीं देना चाहिए। इसके पलट में टेक कंपनियां ने कहा कि इससे टेलीकॉम ऑपरेटर को नुकसान होने बात फर्जी है ट्राई चाहता है कि टेक कंपनियां को अलग से स्पेक्ट्रम दे दिया जाय।लेकिन डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम ने इसे खारिज कर दिया।
डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम का मानना है की टेक कंपनियों को स्पेक्ट्रम टेलीकॉम ऑपरेटर से लीज पर लेना चाहिए। हालाकि इसका अन्तिम फैसला कैबिनेट में ही होगा। बीआईएफ को आश है कि सरकार डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के इस तर्क को खारिज कर देगी। और उन्हें अलग से स्पेक्ट्रम मिलने पर ही फैसला होगा।
अब इस मामले के फैसले का आने में वक्त तो लगना तय है हो सकता है मसला कोर्ट चला जाए।
लेकिन बात यही खत्म नहीं हुई अभी तो एक और मसला स्पेक्ट्रम के प्राइवेसी का भी है भले ही ट्राई ने अपने रिजर्व प्राइवेसी में कीमतों को 35 से 40 प्रतिशत तक कम कर दिया है लेकिन कंपनियां इस पप्राइज को ज्यादा बता रही हैं
ANY ने भी हाल ही में कहा है की भारत में स्पेक्ट्रम का दाम दुनिया के मानकों से कही ज्यादा है और कैबिनेट अभी तक 5G स्पेक्ट्रम की कीमतों तय नहीं कर पाई है। लोगो ने 5G phone लेना तो शुरू कर दिया है कि जब 5G आएगा तो सबसे पहले बिना बफरिंग वाला वीडियो उन्हीं के फोन में चलेगा। लेकिन टेलीकॉम ऑपरेटर और टेक कंपनियों के बीच। तना तनी में टाइम तो लगेगा और 5G आने में भी टाइम लगेगा।
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